वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट कोर्ट के अंतरिम फैसले को लेकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने प्रतिक्रिया दी है। ओवैसी ने कहा, यह अंतरिम आदेश है। हम उम्मीद करते हैं कि शीर्ष कोर्ट इस पूरे कानून पर जल्द अंतिम फैसला सुनाए और सुनवाई शुरू हो। यह फैसला एनडीए सरकार द्वारा बनाए गए कानून से वक्फ की संपत्तियों को बचाने में मदद नहीं करेगा। इससे अतिक्रमण करने वालों को फायदा मिलेगा। वक्फ की संपत्तियों का विकास नहीं हो पाए। हम उम्मीद करते हैं कि शीर्ष कोर्ट जल्द ही अंतिम फैसला सुनाएगा।
उन्होंने कहा, सीओ की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह व्यक्ति ‘जहां तक संभव हो’ मुस्लिम होना चाहिए। अब सरकार यही कहेगी कि उन्हें कोई योग्य मुस्लिम नहीं मिला। जो पार्टी किसी मुसलमान को सांसद का टिकट नहीं देती, जिसके पास एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है, क्या वह मुसलमान अधिकारी चुनेगी? खुफिया विभाग (आईबी) में कितने मुसलमान अधिकारी हैं? वे वक्फ में गैर मुसलमानों की नियुक्ति करेंगे। क्यों? यह संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है। सोचिए, अगर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) में किसी गैर-सिख को सदस्य बना दिया जाए तो सिख कैसा महसूस करेंगे?
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हैदराबाद सांसद ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर पूरी तरह तरह से रोक नहीं लगाई है कि संबंधित व्यक्ति को कम से कम पांच साल से इस्लाम धर्म को मानने वाला होना चाहिए। कोई भी ऐसा कानून नहीं है जो किसी धर्म के व्यक्ति को दूसरे धर्म को दान देने से रोकता हो। संविधान के अनुच्छेद 300 के मुताबिक मैं अपनी संपत्ति जिसे चाहूं, उसे दे सकता हूं। तो फिर केवल इस (इस्लाम) धर्म के लिए ऐसा प्रावधान क्यों बनाया गया है? भाजपा को बताना चाहिए कि अब तक कितने लोगों ने धर्म बदलने के बाद वक्फ को संपत्ति दान की है। कलेक्टर जांच वाला प्रावधान जरूर रोका गया है, लेकिन कलेक्टर के पास सर्वे कराने की ताकत अभी भी है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की कुछ अहम धाराओं पर रोक लगा दी है। इसमें वह धारा भी शामिल है, जो कहती है कि सिर्फ वही लोग वक्फ का गठन कर सकते हैं, जो पिछले पांच साल से इस्लाम धर्म का पालन कर रहे हों। हालांकि, कोर्ट ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। चीफ जस्टिस (सीजेई) बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, किसी भी कानून को असांविधानिक मानने से पहले यह मान कर चला जाता है कि वह संविधान के अनुरूप है। बहुत ही दुर्लभ मामलों में दखल दिया जाता है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर 128 पन्नों का अंतरिम आदेश जारी किया।